सेवा के पथ पर चलना
रूही संस्थान के कार्य को मार्गदर्शन करने वाला वैचारिक ढ़ाँचा व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास को सम्बोधित करता हैं, यह माना गया है कि व्यक्ति की आध्यात्मिक परिस्थिति और उसका या उसकी प्रगति ऐसे विषय है जिन्हें केवल ईश्वर द्वारा ही जाँचा जा सकता है और यह कि मनुष्य को इसे मापने का अनुमान नहीं लगाना चाहिए। इसलिए संस्थान ने ऐसे शिक्षा-विज्ञान को अपनाया है जो केवल उन तरीकों से सम्बन्धित है जिससे व्यक्ति को अपनी सेवा करने की क्षमता को बढ़ाने में सहायता मिलें। यह क्षमता, जहां आध्यात्मिकता से घनिष्टतापूर्वक जुड़ी है, इसके संबंध में इस प्रकार संचालित होती है कि जिसे सटीक परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है। इतना समझना पर्याप्त है कि सेवा के क्षेत्र ऐसे वातावरण को प्रकट करते हैं जिनके भीतर आध्यात्मिकता उपजाई जा सकती है।
आध्यात्मिक शिक्षा की एक प्रणालीबद्ध प्रक्रिया को गति तब मिलती है जब व्यक्ति द्वारा उसकी रूचियों और योग्यता के अनुसार, चुने गये सेवा के पथ पर उनके साथ-साथ चला जाता है। कोलम्बिया की आबादी के साथ काम करने से प्राप्त अनुभवों के आधार पर, रूही संस्थान ने विशिष्ट “सेवा के पथों” को चिन्हित किया है। समझ को प्रत्येक पथ पर पाठ्यक्रमों की एक श्रृंखला द्वारा बढ़ावा दिया जाता है जिनमें से कुछ सेवा कार्यों के लिये आवश्यक कुशलतायें तथा अभिवृत्तियां प्रदान करते हैं जबकि अन्य आध्यात्मिक शिक्षायें तथा अनुभूति उपलब्ध कराते हैं जो इन कार्यो को अर्थ प्रदान करते है।
जैसा कि पहले भी सुझाया गया है, संस्थान के पाठ्यक्रमों का मुख्य अनुक्रम किसी एक विषय-वस्तु की श्रृंखला, जिसका विशिष्ट उद्देश्य व्यक्ति के ज्ञान को बढ़ाना हो, के अनुसार क्रमबद्ध नहीं है। सामग्री और क्रम को सेवा-कार्यों की श्रृंखला पर आधारित किया गया है, जिसके अभ्यास से व्यक्ति में क्षमता का निर्माण होता है जो गतिशील, विकासशील समुदायों की ज़रूरतों को पूरा करता है। और जैसा ऊपर भी उल्लेखित है, ऐसी क्षमता की बढ़ोत्तरी को “सेवा के पथ पर चलने” के तौर पर देखा जाता है। ऐसे पथों पर पहले व्यक्ति की सहायता कुछ सामान्य कार्य को पूरा करने में की जाती है फिर अधिक जटिल और अपेक्षापूर्ण सेवा कार्यों में। यह क्षमता निर्माण की प्रकृति हैः जैसे ही आप स्वयं सेवा के पथ पर चलना सीखना प्रारंभ करते है, कोई न कोई आपके साथ-साथ चलता है। यदि आप गिरते है, आपके करीब कोई होता है जो आपको सम्भालता है। त्रुटियां स्वीकार की जाती हैं। आत्मविश्वास का धीरे-धीरे निर्माण होता है। निरंतर भावनात्मक अपीलों द्वारा उत्पन्न उत्तेजित उत्साह एवं बड़े लक्ष्यों को निर्धारित करने से परहेज किया जाता है।
संस्थान के पाठ्यक्रमों के मुख्य अनुक्रम में सेवा-कार्य का उद्देश्य, स्थानीय समुदायों को एक स्वस्थ विकास की ओर ले जाने वाली प्रक्रिया के गतिशील पैटर्न को स्थापित करना है। इस प्रक्रिया के पैटर्न में भक्तिपरक बैठक, गृह-भ्रमण के कार्यक्रम, बच्चों की कक्षाएँ, किशोरों के समूह और अध्ययनवृत कक्षाएँ सम्मिलित है - जो बहाउल्लाह की शिक्षाओं को व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों द्वारा विभिन्न परिवेशों में बाँटने से प्रबलित होते है।
रूही संस्थान अपने मुख्य अनुक्रम के अलावा, कम से कम दो प्रकार के पाठ्यक्रमों का विकास कर रहा है जो इसकी शाखाएँ हैं। ये शाखा पाठ्यक्रम सहभागियों को और भी विशिष्ट सेवा के पथों पर चलने की अनुमति देता है, जबकि वे अपने मुख्य पाठ्यक्रम के अध्ययन को जारी रखते है। पहले प्रकार के पाठ्यक्रम उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करेंगे जो बच्चों की शिक्षा में रूचि रखते है, दूसरे प्रकार के पाठ्यक्रम किशोरों के साथ काम करने की क्षमता का विकास करेंगे।
मुख्य अनुक्रम के पाठ्यक्रम सामग्रियों, और इसकी दो शाखाओं का विवरण नीचे उपलब्ध कराया गया है। साधारणतया प्रतिभागियों के छोटे समूह, अपने सहशिक्षक की सहायता से, पाठ्यक्रम सामग्रियों का गहनता से अध्ययन करने हेतु, एक आनन्दित, शान्त और ध्यान योग्य नीरवता के माहौल में मिलते है। क्षमता-निर्माण प्रक्रिया जो सामग्रियों के अध्ययन से विश्व भर में बढ़ रही है उसे विश्व न्याय मन्दिर इन शब्दों में वर्णित करते हैंः
“हज़ारों-हज़ार लोग, पूरे मानव परिवार की विविधता को अपनाते हुये, रचनात्मक शब्दों का क्रमबद्ध अध्ययन एक ऐसे वातावरण में कर रहे हैं जो गम्भीर और उल्लास से भरा है। इसे जब वे विभिन्न कार्यों, समीक्षा तथा विचार विमर्श की प्रक्रिया द्वारा लागू करने का प्रयास करते हैं तथा इससे प्राप्त अंर्तदृष्टि द्वारा वे देख पाते हैं कि प्रभुधर्म की सेवा करने की उनकी क्षमता नई ऊँचाइयों को पा चुकी है...”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
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इस पाठ्यक्रम के अनुक्रम की पहली पुस्तक व्यापक रूप से पहचान के प्रश्न से सम्बन्धित है। “मैं सेवा के पथ पर चलता हूँ” वाक्य में “मैं” शब्द की वास्तविक पहचान क्या है? इस पुस्तक में व्यक्तिगत पहचान के तीन पहलुओं को अन्वेषित किया गया हैं “मेरे अस्तित्व की वास्तविकता मेरी आत्मा है जो उन आवश्यक गुणों जिनकी आवश्यकता ईश्वर की ओर एक महिमामय और शाश्वत यात्रा के लिए पड़ती है, को अर्जित करने के लिए इस दुनिया से होकर गुजरती है। मेरे सर्वाधिक अभिलाषित क्षण वे हैं जिन्हें ईश्वर की याद में गुज़ारा गया है, क्योंकि प्रार्थना वह दैनिक पोषण है जिसे मेरी आत्मा को अवश्य ही प्राप्त करना चाहिए यदि इसे अपने उच्चतर उद्देश्य को पूरा करना है। इस जीवन की मेरी मुख्य चिंताओं में से एक है पवित्र लेखों को पढ़ना, दिव्य शिक्षाओं के प्रति अपनी समझ को बढ़ाने का प्रयास करना और उन्हें अपने स्वयं के दैनिक जीवन और समुदाय के जीवन में लागू करना सीखना। इस पुस्तक की इकाईयाँ हैं “बहाई लेखों को समझना”, “प्रार्थना” और “जीवन और मृत्यु”। यह अध्ययन करने वालों को प्रोत्साहित करती है कि वे अपने घरों में प्रार्थना तथा उपासना के लिए एक सभा आयोजित कर सेवा पथ पर पहला कदम उठाएँ।
“अपने सृष्टिकर्ता के साथ वार्तालाप की प्रत्येक हृदय की अंतरंग अभिलाषा के उत्तरस्वरूप वे अलग-अलग परिवेश में सामूहिक प्रार्थना सभाओं का आयोजन करते हैं, एक-दूसरे से प्रार्थनामय वातावरण में जुड़ते हैं, एक-दूसरे के प्रति आध्यात्मिक रूप से संवेदनशील बनते हैं और एक ऐसे जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जो अपने भक्तिपरक चरित्र के लिए अलग पहचान बनाता है।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
दिव्य जीवन: एक चिन्तन
पुस्तक 1
इस पाठ्यक्रम के अनुक्रम की पहली पुस्तक व्यापक रूप से पहचान के प्रश्न से सम्बन्धित है। “मैं सेवा के पथ पर चलता हूँ” वाक्य में “मैं” शब्द की वास्तविक पहचान क्या है? इस पुस्तक में व्यक्तिगत पहचान के तीन पहलुओं को अन्वेषित किया गया हैं “मेरे अस्तित्व की वास्तविकता मेरी आत्मा है जो उन आवश्यक गुणों जिनकी आवश्यकता ईश्वर की ओर एक महिमामय और शाश्वत यात्रा के लिए पड़ती है, को अर्जित करने के लिए इस दुनिया से होकर गुजरती है। मेरे सर्वाधिक अभिलाषित क्षण वे हैं जिन्हें ईश्वर की याद में गुज़ारा गया है, क्योंकि प्रार्थना वह दैनिक पोषण है जिसे मेरी आत्मा को अवश्य ही प्राप्त करना चाहिए यदि इसे अपने उच्चतर उद्देश्य को पूरा करना है। इस जीवन की मेरी मुख्य चिंताओं में से एक है पवित्र लेखों को पढ़ना, दिव्य शिक्षाओं के प्रति अपनी समझ को बढ़ाने का प्रयास करना और उन्हें अपने स्वयं के दैनिक जीवन और समुदाय के जीवन में लागू करना सीखना। इस पुस्तक की इकाईयाँ हैं “बहाई लेखों को समझना”, “प्रार्थना” और “जीवन और मृत्यु”। यह अध्ययन करने वालों को प्रोत्साहित करती है कि वे अपने घरों में प्रार्थना तथा उपासना के लिए एक सभा आयोजित कर सेवा पथ पर पहला कदम उठाएँ।
“अपने सृष्टिकर्ता के साथ वार्तालाप की प्रत्येक हृदय की अंतरंग अभिलाषा के उत्तरस्वरूप वे अलग-अलग परिवेश में सामूहिक प्रार्थना सभाओं का आयोजन करते हैं, एक-दूसरे से प्रार्थनामय वातावरण में जुड़ते हैं, एक-दूसरे के प्रति आध्यात्मिक रूप से संवेदनशील बनते हैं और एक ऐसे जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जो अपने भक्तिपरक चरित्र के लिए अलग पहचान बनाता है।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
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मुख्य अनुक्रम की पुस्तक 2 विचार करती है कि सेवा पथ पर चलने का क्या अर्थ है। इसमें तीन इकाईयाँ हैं। पहली दूसरों की सेवा करने से प्राप्त आनंद का अन्वेषण करती है, जबकि अगली दो, दूसरों से मन और चेतना को उल्लसित करने वाले विषयों में वार्तालाप को शुरू करने के लिए आवश्यक ज्ञान, क्षमताओं और गुणों पर ध्यान केन्द्रित करती हैं। अवसर की मांग पर, आध्यात्मिक नियमों को जोड़कर, दिन प्रतिदिन के वार्तालापों को उन्नयन करने की योग्यता को दूसरी इकाई में संबोधित किया गया है। तीसरी इकाई, तब, सामुदायिक जीवन की ओर मुड़ती है। मुख्य अनुक्रम में प्रोत्साहित किया गया सेवा का दूसरा कार्य- आध्यात्मिक और सामाजिक अस्तित्व के केंद्र में स्थित विषयों पर चर्चा के लिए मित्रों और पड़ोसियों से मिलना-एकता और सहचर्य के सम्बन्धों को प्रगाढ़ करता है जो समूहिक जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इन तीन इकाईयों का शीर्षक है:“शिक्षण का आनंद”, “उल्लसित वार्तालाप” तथा “दृढ़ीकरण विषय”
“जब वे एक-दूसरे के घरों में जाते हैं और परिवारों, मित्रों तथा जान-पहचान के लोगों से मिलते हैं तब आध्यात्मिक महत्व के विषयों पर उद्देश्यपूर्ण बातें करते हैं, ...और एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अभियान में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या को आमंत्रित करते हैं।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
सेवा का संकल्प
पुस्तक 2
मुख्य अनुक्रम की पुस्तक 2 विचार करती है कि सेवा पथ पर चलने का क्या अर्थ है। इसमें तीन इकाईयाँ हैं। पहली दूसरों की सेवा करने से प्राप्त आनंद का अन्वेषण करती है, जबकि अगली दो, दूसरों से मन और चेतना को उल्लसित करने वाले विषयों में वार्तालाप को शुरू करने के लिए आवश्यक ज्ञान, क्षमताओं और गुणों पर ध्यान केन्द्रित करती हैं। अवसर की मांग पर, आध्यात्मिक नियमों को जोड़कर, दिन प्रतिदिन के वार्तालापों को उन्नयन करने की योग्यता को दूसरी इकाई में संबोधित किया गया है। तीसरी इकाई, तब, सामुदायिक जीवन की ओर मुड़ती है। मुख्य अनुक्रम में प्रोत्साहित किया गया सेवा का दूसरा कार्य- आध्यात्मिक और सामाजिक अस्तित्व के केंद्र में स्थित विषयों पर चर्चा के लिए मित्रों और पड़ोसियों से मिलना-एकता और सहचर्य के सम्बन्धों को प्रगाढ़ करता है जो समूहिक जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इन तीन इकाईयों का शीर्षक है:“शिक्षण का आनंद”, “उल्लसित वार्तालाप” तथा “दृढ़ीकरण विषय”
“जब वे एक-दूसरे के घरों में जाते हैं और परिवारों, मित्रों तथा जान-पहचान के लोगों से मिलते हैं तब आध्यात्मिक महत्व के विषयों पर उद्देश्यपूर्ण बातें करते हैं, ...और एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अभियान में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या को आमंत्रित करते हैं।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
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रुही संस्थान द्वारा संबोधित तीसरा सेवा कार्य है: बच्चों की आध्यात्मिक शिक्षा का क्षेत्र। समाज के रूपान्तरण के लिए बच्चों की शिक्षा महत्वपूर्ण है। पुस्तक 3 उन कुछ ज्ञान, कुशलताओं और गुणों पर ध्यान देती है, जिनकी आवश्यकता उन्हें होगी जो सेवा के इस महत्वूपर्ण क्षेत्र में प्रवेश करना चाहते हैं। इसमें दो इकाईयां हैं, “बहाई शिक्षा के कुछ सिद्धांत” तथा “बच्चों की कक्षाओं के लिए पाठ, ग्रेड 1”। पहली इकाई शिक्षा में अंतर्निहित कुछ नियमों तथा अवधारणाऑ की बहाई दृष्टिकोण से जांच करती है। यह भी चर्चा करती है कि एक शिक्षक सीखने का उचित वातावरण उत्पन्न करने के लिए आवश्यक अनुशासन सहित बड़े ही प्रेम एवं समझ के साथ किस प्रकार कक्षा का प्रबंधन कर सकता है। दूसरी इकाई छोटे बच्चों में आध्यात्मिक गुणों जैसे ईमानदारी, उदारता, तथा विश्वासपात्रता के विकास को पोषित करने की अभिलाषा से चौबीस पाठों का एक समुच्चय उपलब्ध कराती है। शिक्षकों की तैयारी के लिए भी कुछ सामग्री सम्मिलित है।
“दुनिया भर के बच्चों की आकांक्षा-अभिलाषा और आध्यात्मिक शिक्षा की उनकी ज़रूरत को जानते हुए उन्हें कक्षाओं में शामिल करने के वे अपने प्रयास बढ़ाते हैं, जो युवाओं के लिये आकर्षण के केन्द्र बनते हैं और समाज में प्रभुधर्म ही जड़ें मजबूत करते हैं।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
बच्चों की कक्षा, ग्रेड 1 को पढ़ाना
पुस्तक 3
रुही संस्थान द्वारा संबोधित तीसरा सेवा कार्य है: बच्चों की आध्यात्मिक शिक्षा का क्षेत्र। समाज के रूपान्तरण के लिए बच्चों की शिक्षा महत्वपूर्ण है। पुस्तक 3 उन कुछ ज्ञान, कुशलताओं और गुणों पर ध्यान देती है, जिनकी आवश्यकता उन्हें होगी जो सेवा के इस महत्वूपर्ण क्षेत्र में प्रवेश करना चाहते हैं। इसमें दो इकाईयां हैं, “बहाई शिक्षा के कुछ सिद्धांत” तथा “बच्चों की कक्षाओं के लिए पाठ, ग्रेड 1”। पहली इकाई शिक्षा में अंतर्निहित कुछ नियमों तथा अवधारणाऑ की बहाई दृष्टिकोण से जांच करती है। यह भी चर्चा करती है कि एक शिक्षक सीखने का उचित वातावरण उत्पन्न करने के लिए आवश्यक अनुशासन सहित बड़े ही प्रेम एवं समझ के साथ किस प्रकार कक्षा का प्रबंधन कर सकता है। दूसरी इकाई छोटे बच्चों में आध्यात्मिक गुणों जैसे ईमानदारी, उदारता, तथा विश्वासपात्रता के विकास को पोषित करने की अभिलाषा से चौबीस पाठों का एक समुच्चय उपलब्ध कराती है। शिक्षकों की तैयारी के लिए भी कुछ सामग्री सम्मिलित है।
“दुनिया भर के बच्चों की आकांक्षा-अभिलाषा और आध्यात्मिक शिक्षा की उनकी ज़रूरत को जानते हुए उन्हें कक्षाओं में शामिल करने के वे अपने प्रयास बढ़ाते हैं, जो युवाओं के लिये आकर्षण के केन्द्र बनते हैं और समाज में प्रभुधर्म ही जड़ें मजबूत करते हैं।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
बच्चों की आध्यात्मिक शिक्षा के लिए छह वर्षीय कार्यक्रम लागू करना
बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यक्रम रूही संस्थान की श्रृंखला में एक विशेष शाखा हैं। पुस्तक 3 के साथ, वे 5 या 6 से 11 या 12 वर्ष की आयु के बच्चों की आध्यात्मिक शिक्षा के लिए कक्षाएं संचालित करने के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित करना चाहते हैं। ये पाठ्यक्रम प्रकृति में उत्तरोत्तर अधिक जटिल होते जाते हैं, और यह कल्पना की गई है कि, इसके पूरा होने पर इस विशिष्ट शाखा में, शिक्षकों ने सामान्य रूप से शिक्षा के क्षेत्र के बारे में पर्याप्त मात्रा में ज्ञान प्राप्त कर लिया होगा और पाठ योजना और कक्षा प्रबंधन से संबंधित काफी परिष्कृत कौशल विकसित कर लिया होगा।
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बच्चों की कक्षाओं को पढ़ाना:
पुस्तक 3 का पहला शाखा पाठ्यक्रम
यह पुस्तक, जो बच्चों की आध्यात्मिक शिक्षा के लिए पुस्तक 3 की आयोजित कक्षाओं से प्राप्त अनुभव पर आधारित है, सेवा के इस अत्यधिक मेधावी मार्ग को अपनाने में रुचि रखने वालों के लिए है। यह प्रतिभागियों को अपने प्रथम वर्ष की कक्षाओं के संचालन पर विचार करने का अवसर प्रदान करती है और उन्हें बच्चों के लिए ऐसे पाठ प्रदान करती है जो आचरण की उन आदतों और पैटर्न को सुदृढ़ करना चाहते हैं जो कि ग्रेड 1 में उनके द्वारा सीखे गए आध्यात्मिक गुणों की अभिव्यक्ति हैं। तीन के समुच्चय में विभाजित नौ पाठ, हमारे परम-पिता के साथ एक व्यक्ति के रिश्ते से संबंधित विषय-वस्तुओं को संबोधित करते हैं।
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बच्चों की कक्षाओं को पढ़ाना:
पुस्तक 3 का दूसरा शाखा पाठ्यक्रम
पुस्तक 3 के पहले शाखा पाठ्यक्रम की तरह, यह शिक्षकों को ऐसे पाठ पढ़ाने के लिए तैयार करता है जो एक ईमानदार और कुलीन चरित्र से जुड़ी आदतों और आचरण के पैटर्न को सुदृढ़ करने का प्रयास करते हैं। तीन के चार समुच्चयों में विभाजित, बारह पाठ किसी व्यक्ति के अपने साथी मनुष्यों के साथ संबंधों से संबंधित विषयों को संबोधित करते हैं, जैसे "दूसरों के साथ सद्भाव में रहना" और "मानव गरिमा का सम्मान करना"।
बच्चों की कक्षाओं को पढ़ाना:
पुस्तक 3 का तीसरा शाखा पाठ्यक्रम
(सामग्री विकास के चरण में)
इस पुस्तक को बनाने वाली इकाइयाँ वर्तमान में पूर्व-प्रकाशन रूप में उपलब्ध हैं, और उनकी सामग्री का विवरण आगामी है।
बच्चों की कक्षाओं को पढ़ाना:
पुस्तक 3 का चौथा शाखा पाठ्यक्रम
(सामग्री विकास के चरण में)
इस पुस्तक को बनाने वाली इकाइयाँ वर्तमान में पूर्व-प्रकाशन रूप में उपलब्ध हैं, और उनकी सामग्री का विवरण आगामी है।
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मुख्य अनुक्रम में पुस्तक 4 पुनः पहचान के प्रश्न, “मैं सेवा के पथ पर चलता हूँ” वाक्य में “मैं” पर लौटती है। इतिहास व्यक्तिगत पहचान के साथ ही साथ सभी लोगों के पहचानों को भी काफी स्वरूप प्रदान करता है। इस पुस्तक की दूसरी और तीसरी इकाई बहाउल्लाह, बहाई धर्म के प्रणेता और उनके अग्रदूत, बाब के जीवन इतिहास के अध्ययन के प्रति समर्पित है। पहली इकाई में इस दिवस की महत्ता को संक्षेप में अन्वेषण किया गया है। अतीत के निर्माणकर्ता तत्वों का स्पष्ट दर्शन व्यक्तियों को भविष्य के निर्माण में अधिक प्रभावकारी योगदान करने के योग्य बनाता है।
“जब वे एक-दूसरे के घरों में जाते हैं और परिवारों, मित्रों तथा जान-पहचान के लोगों से मिलते हैं (वे) अपना ज्ञान बढ़ाते हैं... और एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अभियान में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या को आमंत्रित करते हैं।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
युगल प्रकटरूप
पुस्तक 4
मुख्य अनुक्रम में पुस्तक 4 पुनः पहचान के प्रश्न, “मैं सेवा के पथ पर चलता हूँ” वाक्य में “मैं” पर लौटती है। इतिहास व्यक्तिगत पहचान के साथ ही साथ सभी लोगों के पहचानों को भी काफी स्वरूप प्रदान करता है। इस पुस्तक की दूसरी और तीसरी इकाई बहाउल्लाह, बहाई धर्म के प्रणेता और उनके अग्रदूत, बाब के जीवन इतिहास के अध्ययन के प्रति समर्पित है। पहली इकाई में इस दिवस की महत्ता को संक्षेप में अन्वेषण किया गया है। अतीत के निर्माणकर्ता तत्वों का स्पष्ट दर्शन व्यक्तियों को भविष्य के निर्माण में अधिक प्रभावकारी योगदान करने के योग्य बनाता है।
“जब वे एक-दूसरे के घरों में जाते हैं और परिवारों, मित्रों तथा जान-पहचान के लोगों से मिलते हैं (वे) अपना ज्ञान बढ़ाते हैं... और एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अभियान में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या को आमंत्रित करते हैं।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
![](/thumbnails/668_RUHI7510_JY1_BK5_HI_2.1.1.PE_Thumbnail_20230531.jpg)
रूही संस्थान के अनुक्रम में यह पुस्तक एक विशेष स्थान रखती है। बहाई शिक्षाओं के अनुसार, एक व्यक्ति 15 वर्ष में परिपक्वता की आयु में पहुंचता है जब आध्यात्मिक और नैतिक बाध्यताएँ लागू हो जाती है। इन आयु से ठीक पहले के वर्षो की विशेष महत्ता है। यह वह समय है जब व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन की आधारभूत अवधारणाएँ किशोर के मन में बनने लगती हैं जो बचपन को पीछे छोड़ने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। 12 से 15 वर्ष के युवाओं के पास कहने के लिए बहुत कुछ है, और जो उनसे बच्चों जैसा व्यवहार करता है, उनके उचित पहचान को आकार देने का अवसर खो देता है। पुस्तक 5 जिन तीन इकाई से मिलकर बनी है, वे कुछ उन अवधारणाओं, कुशलताओं, गुणों और अभिव्यक्तियों पर केन्द्रित है, जिसे अनुभव दर्शाता है कि वे किशोरों के आध्यात्मिक सशक्तिकरण कार्यक्रम को लागू करने के लिये आवश्यक हैं।
“वे किशोरों को जीवन सशक्त होने में सहायता देते हैं कि वे अपनी ऊर्जाओं को सभ्यता के विकास की ओर निर्देशित कर सकें।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
किशोर ऊर्जा को उजागर करना
पुस्तक 5
रूही संस्थान के अनुक्रम में यह पुस्तक एक विशेष स्थान रखती है। बहाई शिक्षाओं के अनुसार, एक व्यक्ति 15 वर्ष में परिपक्वता की आयु में पहुंचता है जब आध्यात्मिक और नैतिक बाध्यताएँ लागू हो जाती है। इन आयु से ठीक पहले के वर्षो की विशेष महत्ता है। यह वह समय है जब व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन की आधारभूत अवधारणाएँ किशोर के मन में बनने लगती हैं जो बचपन को पीछे छोड़ने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। 12 से 15 वर्ष के युवाओं के पास कहने के लिए बहुत कुछ है, और जो उनसे बच्चों जैसा व्यवहार करता है, उनके उचित पहचान को आकार देने का अवसर खो देता है। पुस्तक 5 जिन तीन इकाई से मिलकर बनी है, वे कुछ उन अवधारणाओं, कुशलताओं, गुणों और अभिव्यक्तियों पर केन्द्रित है, जिसे अनुभव दर्शाता है कि वे किशोरों के आध्यात्मिक सशक्तिकरण कार्यक्रम को लागू करने के लिये आवश्यक हैं।
“वे किशोरों को जीवन सशक्त होने में सहायता देते हैं कि वे अपनी ऊर्जाओं को सभ्यता के विकास की ओर निर्देशित कर सकें।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
किशोरों के आध्यात्मिक सशक्तिकरण कार्यक्रम को लागू करना
किशोर युवाओं हेतु कार्यक्रम को लागू करने के लिए पाठ्यक्रम एक विशिष्ट शाखा का निर्माण करेंगे। वे जो इस सेवा पथ पर चलते हैं, अनुप्रेरक कहलाते हैं जिनकी मदद 12 से 15 वर्ष के युवाजनों के साथ कार्य करने के लिये तैयार होने में तथा इस आयु वर्ग के साथ रूही संस्थान द्वारा अनुशंसा की गई सामग्री से परिचित कराने में की जायेगी। इस सामग्री में वर्तमान में बहाई धर्म द्वारा प्रेरित सामग्री है तथा कुछ अन्य भी जो विशिष्टतया बहाई विषयों से संबंधित है। इन पुस्तकों की सूची के लिये यहां दबायें।
प्रारम्भिक संवेग
पुस्तक 5 का प्रथम शाखा पाठ्यक्रम (सामग्री विकास के चरण में)
इस पुस्तक का निर्माण करने वाली इकाईयां वर्तमान में pre-publication form, में उपलब्ध हैं, और उनकी सामग्री का विवरण जल्द ही उपलब्ध होगा
बढ़ता दायरा
पुस्तक 5 का दूसरा शाखा पाठ्यक्रम (सामग्री विकास के चरण में)
इस पुस्तक का निर्माण करने वाली इकाईयां वर्तमान में pre-publication form, में उपलब्ध हैं, और उनकी सामग्री का विवरण जल्द ही उपलब्ध होगा
![](/thumbnails/668_RUHI7610_TCH_BK6_HI_1.3.1.PE.PV_Thumbnail_20191110.jpg)
प्रत्येक पृष्ठभूमि के लोगों का बहाउल्लाह की शिक्षाओं का अन्वेषण करने और यह जानने के लिए स्वागत है कि वे उन्हें अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कैसे लागू कर सकते हैं। सभी बहाई अपने धर्म की शिक्षाओं और उपदेशों को उदारतापूर्वक और बिना शर्त साझा करते हैं। यद्यपि बहाउल्लाह के संदेश का प्रचार प्रदान की जाने वाली सर्वाधिक आवश्यक सेवाओं में से एक है, शिक्षण करना भी जीने की एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति की अवस्था है - एक ऐसी अवस्था जिसमें व्यक्ति दूसरों के साथ ईश्वर के प्रकटीकरण से स्वयं को प्राप्त हुए ज्ञान और आनंद को साझा करने के लिए प्रेरित होता है। इस अवधारणा का अन्वेषण पुस्तक 6 की पहली इकाई, “शिक्षण का आध्यात्मिक स्वरूप” में किया गया है। यह अपने आधार के रूप में इस समझ को उपयोग करती है कि “होना” और “करना” एक आध्यात्मिक जीवन के अविभाज्य पहलू हैं। दूसरी और तीसरी इकाइयाँ, “शिक्षण के लिए आवश्यक गुण और अभिवृत्तियाँ” तथा “शिक्षण कार्य”, इस आधार को और आगे ले जाती हैं। दूसरी इकाई इस बात पर विचार करती है कि किसी की आंतरिक स्थिति कैसे सेवा के क्षेत्र में उसके प्रयासों में योगदान देती है और सशक्त होती है, जबकि तीसरी इस बात पर नजर डालती है कि शिक्षण के कार्य को कैसे किया जाना चाहिए। अन्ना और एमिलिया की कहानी के माध्यम से तीसरी इकाई में दिया गया उदाहरण विशेष महत्व का है कि किसी ऐसे व्यक्ति को प्रभुधर्म का परिचय कैसे दिया जाए जो इसके बारे में बहुत कम जानता है।
“जब वे एक-दूसरे के घरों में जाते हैं और परिवारों, मित्रों तथा जान-पहचान के लोगों से मिलते हैं (वे) बहाउल्लाह का संदेश साझा करते हैं और एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अभियान में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में उनका स्वागत करते हैं।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
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प्रभुधर्म का शिक्षण
पुस्तक 6
प्रत्येक पृष्ठभूमि के लोगों का बहाउल्लाह की शिक्षाओं का अन्वेषण करने और यह जानने के लिए स्वागत है कि वे उन्हें अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कैसे लागू कर सकते हैं। सभी बहाई अपने धर्म की शिक्षाओं और उपदेशों को उदारतापूर्वक और बिना शर्त साझा करते हैं। यद्यपि बहाउल्लाह के संदेश का प्रचार प्रदान की जाने वाली सर्वाधिक आवश्यक सेवाओं में से एक है, शिक्षण करना भी जीने की एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति की अवस्था है - एक ऐसी अवस्था जिसमें व्यक्ति दूसरों के साथ ईश्वर के प्रकटीकरण से स्वयं को प्राप्त हुए ज्ञान और आनंद को साझा करने के लिए प्रेरित होता है। इस अवधारणा का अन्वेषण पुस्तक 6 की पहली इकाई, “शिक्षण का आध्यात्मिक स्वरूप” में किया गया है। यह अपने आधार के रूप में इस समझ को उपयोग करती है कि “होना” और “करना” एक आध्यात्मिक जीवन के अविभाज्य पहलू हैं। दूसरी और तीसरी इकाइयाँ, “शिक्षण के लिए आवश्यक गुण और अभिवृत्तियाँ” तथा “शिक्षण कार्य”, इस आधार को और आगे ले जाती हैं। दूसरी इकाई इस बात पर विचार करती है कि किसी की आंतरिक स्थिति कैसे सेवा के क्षेत्र में उसके प्रयासों में योगदान देती है और सशक्त होती है, जबकि तीसरी इस बात पर नजर डालती है कि शिक्षण के कार्य को कैसे किया जाना चाहिए। अन्ना और एमिलिया की कहानी के माध्यम से तीसरी इकाई में दिया गया उदाहरण विशेष महत्व का है कि किसी ऐसे व्यक्ति को प्रभुधर्म का परिचय कैसे दिया जाए जो इसके बारे में बहुत कम जानता है।
“जब वे एक-दूसरे के घरों में जाते हैं और परिवारों, मित्रों तथा जान-पहचान के लोगों से मिलते हैं (वे) बहाउल्लाह का संदेश साझा करते हैं और एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अभियान में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में उनका स्वागत करते हैं।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
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पुस्तक 7 रूही संस्थान की सामग्रियों में प्रकल्पित क्षमता-निर्माण प्रक्रिया की महत्वपूर्ण सेवा के कार्य के लिए समर्पित है - अर्थात्, व्यक्तियों के एक समूह को पाठ्यक्रमों के मुख्य अनुक्रम का अध्ययन करने में मदद करने हेतु। क्षमता निर्माण की इस प्रक्रिया में यह महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति अपने समुदायों की सेवा के पथ पर एक-दूसरे के साथ-साथ चलें। पुस्तक की पहली इकाई पाठ्यक्रमों द्वारा बताए गए मार्ग पर आगे बढ़ने की आध्यात्मिक गतिशीलता की जांच करती है और कार्य करती कुछ शक्तियों के बारे में जागरूकता बढ़ाती है। दूसरी इकाई, “संस्थान पाठ्यक्रमों के ट्यूटर के रूप में सेवा करना”, उन अवधारणाओं, अभिवृत्तियों, गुणों और कौशल का परीक्षण करती है जो किसी व्यक्ति को “अध्ययन वृत कक्षा” कहलाने वाले इस सेवा कार्य को करने में सक्षम बनाती हैं जिसे साधारणतया आठ या दस मित्रों को एकत्रित कर के किया जाता है। तीसरी इकाई, “तृणमूल स्तर पर कला को बढ़ावा देना”, पाठ्यक्रमों द्वारा पोषित की गई शैक्षिक प्रक्रिया को बढ़ाने और सामुदायिक जीवन के पैटर्न को मजबूत करने में कलात्मक प्रयास जो भूमिका निभा सकते हैं, उनकी सराहना उत्पन्न करने के लिए निर्मित किया गया है।
“हज़ारों-हज़ार लोग, पूरे मानव परिवार की विविधता को अपनाते हुये, रचनात्मक शब्दों का क्रमबद्ध अध्ययन एक ऐसे वातावरण में कर रहे हैं जो गम्भीरता और उल्लासता से भरा है।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
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सेवा के पथ पर साथ-साथ चलना
पुस्तक 7
पुस्तक 7 रूही संस्थान की सामग्रियों में प्रकल्पित क्षमता-निर्माण प्रक्रिया की महत्वपूर्ण सेवा के कार्य के लिए समर्पित है - अर्थात्, व्यक्तियों के एक समूह को पाठ्यक्रमों के मुख्य अनुक्रम का अध्ययन करने में मदद करने हेतु। क्षमता निर्माण की इस प्रक्रिया में यह महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति अपने समुदायों की सेवा के पथ पर एक-दूसरे के साथ-साथ चलें। पुस्तक की पहली इकाई पाठ्यक्रमों द्वारा बताए गए मार्ग पर आगे बढ़ने की आध्यात्मिक गतिशीलता की जांच करती है और कार्य करती कुछ शक्तियों के बारे में जागरूकता बढ़ाती है। दूसरी इकाई, “संस्थान पाठ्यक्रमों के ट्यूटर के रूप में सेवा करना”, उन अवधारणाओं, अभिवृत्तियों, गुणों और कौशल का परीक्षण करती है जो किसी व्यक्ति को “अध्ययन वृत कक्षा” कहलाने वाले इस सेवा कार्य को करने में सक्षम बनाती हैं जिसे साधारणतया आठ या दस मित्रों को एकत्रित कर के किया जाता है। तीसरी इकाई, “तृणमूल स्तर पर कला को बढ़ावा देना”, पाठ्यक्रमों द्वारा पोषित की गई शैक्षिक प्रक्रिया को बढ़ाने और सामुदायिक जीवन के पैटर्न को मजबूत करने में कलात्मक प्रयास जो भूमिका निभा सकते हैं, उनकी सराहना उत्पन्न करने के लिए निर्मित किया गया है।
“हज़ारों-हज़ार लोग, पूरे मानव परिवार की विविधता को अपनाते हुये, रचनात्मक शब्दों का क्रमबद्ध अध्ययन एक ऐसे वातावरण में कर रहे हैं जो गम्भीरता और उल्लासता से भरा है।”
विश्व न्याय मंदिर के 21 अप्रैल 2008 के प्रपत्र से
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बहाउल्लाह की संविदा
पुस्तक 8 (पूर्व-प्रकाशन संस्करण)
इस पुस्तक का निर्माण करने वाली इकाईयां वर्तमान में pre-publication form, में उपलब्ध हैं, और उनकी सामग्री का विवरण जल्द ही उपलब्ध होगा
बहाउल्लाह की संविदा
पुस्तक 8 (पूर्व-प्रकाशन संस्करण)
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एक ऐतिहासिक परिदृश्य प्राप्त करना
पुस्तक 9 (पूर्व-प्रकाशन संस्करण)
इस पुस्तक का निर्माण करने वाली इकाईयां वर्तमान में pre-publication form, में उपलब्ध हैं, और उनकी सामग्री का विवरण जल्द ही उपलब्ध होगा
एक ऐतिहासिक परिदृश्य प्राप्त करना
पुस्तक 9 (पूर्व-प्रकाशन संस्करण)
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जीवंत समुदायों का निर्माण
पुस्तक 10 (पूर्व-प्रकाशन संस्करण)
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जीवंत समुदायों का निर्माण
पुस्तक 10 (पूर्व-प्रकाशन संस्करण)
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भौतिक साधन
पुस्तक 11 (सामग्री विकास के चरण में)
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भौतिक साधन
पुस्तक 11 (सामग्री विकास के चरण में)
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परिवार और समुदाय
पुस्तक 12 (सामग्री विकास के चरण में)
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परिवार और समुदाय
पुस्तक 12 (सामग्री विकास के चरण में)
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सामाजिक क्रिया में संलग्नता
पुस्तक 13 (सामग्री विकास के चरण में)
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सामाजिक क्रिया में संलग्नता
पुस्तक 13 (सामग्री विकास के चरण में)
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जनसंवाद में प्रतिभागिता
पुस्तक 14 (सामग्री विकास के चरण में)
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जनसंवाद में प्रतिभागिता
पुस्तक 14 (सामग्री विकास के चरण में)
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पाठ्यक्रम के अध्ययन से सीखने की प्रक्रिया को मिली गति के विषय में, विशेषकर इसकी प्रतिभागी प्रकृति के संबंध में रूही संस्थान के एक प्रारम्भिक सहयोगी ने लिखा हैः
... हम दुनिया के सभी कोनों में फैले हुए समुदायों के सदस्य हैं जो सभी उद्यमों में सर्वोच्च उद्यम में संलग्न है, जो है एक नयी सभ्यता का निर्माण। हमारे संवाद-कार्यो के संवाद इस उद्यम के विभिन्न पहलू जिन्हें कई रूपों में संपादित किया जा रहा हैः उन्नीस दिवसीय सहभोज, आध्यात्मिक सभा और समितियों की बैठकें, ग्रीष्मकालीन विद्यालय, सुदृढ़ीकरण की कक्षाएँ, सम्मेलन, शिक्षण परियोजनाएँ, सामाजिक और आर्थिक विकास के प्रयास आदि। प्रशिक्षण संस्थान के पाठ्यक्रम का मुख्य अनुक्रम हमारे वैश्विक सम्भाषण के उत्कट पहलू को प्रणालीबद्ध बनाना चाहता है जो उन समुदायों के विकास से सम्बन्धित है जो बहाई शिक्षाओं को लागू करने का निरन्तर प्रयास कर रही है। दुनिया के सभी कोनों में बढ़ती संख्या में लोग ऐसे सम्भाषण की ऐसी विधा में शामिल है जिसे हम अध्ययनवृत्त कक्षा कहते हैं। जिन सामग्रियों को हम पढ़ते है वे इस संवाद को संयोजित करता है। यह मुख्य बिन्दुओं को अंकित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि हमारे विचार और कर्म धर्म के लेखों से सम्बन्धित परिच्छेदों द्वारा प्रकाशित हों।
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इस विन्यास में, अध्ययनवृत्त कक्षा का शिक्षक कुछ इस तरह कह रहा हैः “हम ऐसे सेवा के पथ पर चल रहे हैं जो ऐसे समुदायों के विकास में योगदान देने में सहायता करता है जो अस्तित्व के आध्यात्मिक और भौतिक आयामों से परिचित है। ऐसा करने का तरीका यह है कि जो हमने पढ़ा है उसके ज्ञान के प्रकाश में पुस्तक को पढ़ना, कार्य करना और अपने कार्यों की समीक्षा करना। इन सामग्रियों ने मुझे उन क्षमताओं का विकास करने में सहायता की है जिनकी आवश्यकता इस पथ पर चलने के लिए पड़ती है। मेरा विश्वास है कि वे आपकी भी मदद करेंगे। दुनिया के हज़ारों अन्य समूह भी ऐसा ही कर रहे हैं। वे यही संवाद कर रहे हैं, और सभी पृष्ठभूमि के लोगों के मध्य विविध परिस्थितियों में एक व्यापक अनुभवों का निर्माण किया जा रहा है। हम जो करेंगे वह एक वैश्विक अनुभव का हिस्सा होगा। हम जो कहेंगे वह वार्तालाप को समृद्ध बनायेगा। जो हमने सीखा है वह प्रणालीबद्ध किया जायेगा और हमारे द्वारा स्थापित संस्थानों के माध्यम से दुनिया के सभी समुदायों में फैला दिया जायेगा। अध्ययनवृत्त कक्षाओं में हमारी प्रतिभागिता को इस परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। हम एक वैश्विक सीखने की प्रक्रिया में प्रतिभाग कर रहे है, सीख जो बहाई समुदाय की क्षमता का निर्माण करती है जो अपने द्वार को दुनिया के लोगों के लिए पूरी तरह खोल रही है...।
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पाठ्यक्रम के अध्ययन से सीखने की प्रक्रिया को मिली गति के विषय में, विशेषकर इसकी प्रतिभागी प्रकृति के संबंध में रूही संस्थान के एक प्रारम्भिक सहयोगी ने लिखा हैः
... हम दुनिया के सभी कोनों में फैले हुए समुदायों के सदस्य हैं जो सभी उद्यमों में सर्वोच्च उद्यम में संलग्न है, जो है एक नयी सभ्यता का निर्माण। हमारे संवाद-कार्यो के संवाद इस उद्यम के विभिन्न पहलू जिन्हें कई रूपों में संपादित किया जा रहा हैः उन्नीस दिवसीय सहभोज, आध्यात्मिक सभा और समितियों की बैठकें, ग्रीष्मकालीन विद्यालय, सुदृढ़ीकरण की कक्षाएँ, सम्मेलन, शिक्षण परियोजनाएँ, सामाजिक और आर्थिक विकास के प्रयास आदि। प्रशिक्षण संस्थान के पाठ्यक्रम का मुख्य अनुक्रम हमारे वैश्विक सम्भाषण के उत्कट पहलू को प्रणालीबद्ध बनाना चाहता है जो उन समुदायों के विकास से सम्बन्धित है जो बहाई शिक्षाओं को लागू करने का निरन्तर प्रयास कर रही है। दुनिया के सभी कोनों में बढ़ती संख्या में लोग ऐसे सम्भाषण की ऐसी विधा में शामिल है जिसे हम अध्ययनवृत्त कक्षा कहते हैं। जिन सामग्रियों को हम पढ़ते है वे इस संवाद को संयोजित करता है। यह मुख्य बिन्दुओं को अंकित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि हमारे विचार और कर्म धर्म के लेखों से सम्बन्धित परिच्छेदों द्वारा प्रकाशित हों।
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इस विन्यास में, अध्ययनवृत्त कक्षा का शिक्षक कुछ इस तरह कह रहा हैः “हम ऐसे सेवा के पथ पर चल रहे हैं जो ऐसे समुदायों के विकास में योगदान देने में सहायता करता है जो अस्तित्व के आध्यात्मिक और भौतिक आयामों से परिचित है। ऐसा करने का तरीका यह है कि जो हमने पढ़ा है उसके ज्ञान के प्रकाश में पुस्तक को पढ़ना, कार्य करना और अपने कार्यों की समीक्षा करना। इन सामग्रियों ने मुझे उन क्षमताओं का विकास करने में सहायता की है जिनकी आवश्यकता इस पथ पर चलने के लिए पड़ती है। मेरा विश्वास है कि वे आपकी भी मदद करेंगे। दुनिया के हज़ारों अन्य समूह भी ऐसा ही कर रहे हैं। वे यही संवाद कर रहे हैं, और सभी पृष्ठभूमि के लोगों के मध्य विविध परिस्थितियों में एक व्यापक अनुभवों का निर्माण किया जा रहा है। हम जो करेंगे वह एक वैश्विक अनुभव का हिस्सा होगा। हम जो कहेंगे वह वार्तालाप को समृद्ध बनायेगा। जो हमने सीखा है वह प्रणालीबद्ध किया जायेगा और हमारे द्वारा स्थापित संस्थानों के माध्यम से दुनिया के सभी समुदायों में फैला दिया जायेगा। अध्ययनवृत्त कक्षाओं में हमारी प्रतिभागिता को इस परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। हम एक वैश्विक सीखने की प्रक्रिया में प्रतिभाग कर रहे है, सीख जो बहाई समुदाय की क्षमता का निर्माण करती है जो अपने द्वार को दुनिया के लोगों के लिए पूरी तरह खोल रही है...।