बहाई लोग हर जगह सीखने की एक वैश्विक प्रक्रिया में संलग्न हैं जो कि समाज के रुपान्तरण में बहाउल्लाह की शिक्षाओं का उपयोग करने की उनकी क्षमता का निर्माण करने में उनकी मदद कर रही है। सीखने की इस प्रक्रिया में योगदान देने के लिए, रुही संस्थान कार्य तथा अनुसंधान को कार्यक्षेत्र तक ले जाता है, ताकि ऐसे कार्यक्रम एवं सामग्री विकसित हों जो मानव जाति की सेवा करने की व्यक्ति तथा समुदायों की क्षमता का विकास कर सके। व्यक्ति में ऐसी क्षमता का विकास करने को सेवा के उस पथ पर चलने से जोड़ा जा सकता है, जैसा कि बहाई धर्म की अन्तर्राष्ट्रीय सर्वोच्च संस्था विश्व न्याय मन्दिर के प्रपत्र से नीचे दिये गये उद्धरणों में दिया गया है।

इस साइट पर हम अपने कार्यक्रमों के विषय में कुछ जानकारियाँ, उनके विकास से जुड़े शिक्षा-विज्ञान को तथा ऐतिहासिक परिस्थितियाँ उपलब्ध करा रहे हैं। उनके लिए जो मानवता के भविष्य के प्रति चिंतित हैं, विश्व की बेहतरी चाहते हैं, हम अपने पाठ्यक्रमों के मुख्य अनुक्रम की पहली सात पुस्तकें उपलब्ध करा रहे हैं। सभी इनका अध्ययन करने तथा कुछ मित्रों के साथ इसकी सामग्री पर विचार विमर्श करने के लिए आमंत्रित हैं।  

रुही संस्थान
28 फ़रवरी 2024

रुही संस्थान के पाठ्यक्रमों के मुख्य अनुक्रम को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है, जो व्यक्ति को अग्रसारित कर दे.....

“.....उस पथ पर जिसे, मानवजाति के समक्ष बहाउल्लाह की विश्व-व्यवस्था के विचार-दर्शन को उद्घाटित करने के प्रयास में, हमारे समुदाय के सतत् विकसित होते अनुभव द्वारा प्रशस्त किया जा रहा है।”

“यह पथ सम्बन्धी विचार ही अपने आप में इन पाठ्यक्रमों की प्रकृति, उनके उद्देश्य की झलक दिखा देता है, क्योंकि पथ वह होता है जो उस पर चलने के लिए बुलाता है, वह नये क्षितिजों की ओर संकेत देता है, वह प्रयत्नशील और क्रियाशील होने की माँग करता है, यह विभिन्न गतियों तथा प्रगतियों को स्थान देता है, यह संरचित और परिभाषित होता है।”

“कोई भी पथ एकाध व्यक्ति के अनुभव और ज्ञान तक सीमित नही रहता है, बल्कि अनेकानेक लोग उसे जान और समझ सकते हैं, यह समुदाय की संपत्ति है।”

“किसी पथ पर चलने की अवधारणा भी इसी तरह अभिव्यक्तिपूर्ण है। इसके लिए व्यक्ति में स्व-प्रेरणा और स्वेच्छा होनी चाहिए। इसके लिए कुछ कुशलताओं और योग्यताओं की मांग करता है, लेकिन यह कार्य स्वयं भी व्यक्ति को कई योग्यताओं और प्रवृतियों से भर देता है। इसके लिए तर्कसंगत रुप से कदम बढ़ाना आवश्यक होता है लेकिन ज़रुरत पड़ने पर यह नई पगडंडियों की तलाश की संभावना को भी स्वीकारता है। किसी पथ पर चलना शुरु में आसान लग सकता है लेकिन आगे बढ़ने पर यह ज़्यादा चुनौतीपूर्ण बन जाता है।”

“और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह कि व्यक्ति किसी पथ पर दूसरों की संगति में चलता है।”